आज के इस article में हमने 76वें स्वतंत्रता दिवस 2021 के लिए हिन्दी मे भाषण (Independence Day Speech in Hindi), प्रस्तुत किया है। ये हिन्दी speech स्वतंत्रता दिवस पर स्कूलों, कॉलेजों के बच्चों और शिक्षकों के लिए बहुत ही लाभदायक है।
15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) पर भाषण 15 August Best Speech in Hindi [2021]
15 अगस्त पर भाषण (15 August Speech in Hindi)
भाषण 1:
परम आदरणीय,
सभापति महोदय, परम पुण्य गुरुजनों, कदम से कदम मिलाकर चलने वाले मेरे सहपाठियों और "Alhira Children Academy" (अपने स्कूल या संस्था का नाम लें) के प्रांगन में आए हुए सज्जनों तथा समाज और देश के उत्थान में कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले मेरे नौजंवान साथियों।
आज़ बड़े ही प्रीती क्री बात है कि आज 15 अगस्त के स्वर्णिम दिवस के शुभ अवसर पर हमें शहीदों के प्रति कुछ भाव भंगिमा प्रकट करने का अवसर मिला है। इसलिए मै अपने गुरुदेवो का आभारी हूँ। मै कोई वक्ता नही हूँ लेकिन इसमे मैं अपने आप को वक्ता बनने की कोशिश करूँगा । इस क्रम में यदि कहीं गलतियाँ हो जाए तो आपलोग क्षमा करने की कृपा कीजिए।
जंजीरों में जकड़ी माता कहती तुझे पुकार के।
आंखों मे भरी है आंसू कर्ज मांगती प्यार के।।
दोस्तों, आप तो जानते ही हैं कि हमारी ‘भारत माँ' को लोहे की मोटी-मोटी जंजीरें, हाथों मे हथकड़िया और पैरों मे वेड़िया लगाकर विदेशी वहसी दरिन्दे जकड़ रखे थे। चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाईं पड़ रहा था । शोरगुल और हाहाकारी आवाजों के कारण दसो दिशाएं कांप रही थी और उसी वक्त लोह श्रृंखलाओं मे आबद्ध माथे पर मुकुट धारण किए हए, हाथो में तिरंगा थामे हुए एक देवी की करूण चित्कार हिंद के बेटे के दिलों मे एक भयंकर आग पैदा कर रहा था। मानो वह पुकार पुकार कर कह रही थी। अरे क्या तुम्हारे रगो का खून पानी बनकर बह गया है? क्या तुम्हारे दिलों में धधकती आग बुझ गई है? क्या तुम मेरी हालत नहीं देख रहे हो? क्या तुम्हें अपनी माताओं के इज्जत का जरा भी ख्याल नहीं है?
इस करुण चित्कार को हिंद के बेटे ने सुना और पीछे मुड़कर देखा तो उसके होठों से सिसकियां छूट चली। एक नहीं दो नहीं बल्कि हजारों विदेशी बहसी दरिन्दे भारत मां को चारों तरफ से घेरकर ठहाका लगा रहा था। इस करुण दृश्य को देखकर अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा जिसकी भावना का भाव भंगीमा इस प्रकार प्रस्तुत कर रहा हूं-
ऐ माँ मैं आ रहा हूं अब,
दुश्मन जो टकराएगा तो कर दूंगा उसका काम तमाम।
हार्दिक दिल से करता हूं मैं इंडिया तुझे सलाम।।
और इतना कह कर उसने नियति के इस कठोर निर्णय को टक्कर देने चल पड़े। कभी राणा सांगा बन कर अपने माथे की कलंक की कलिमा को मिटाने के लिए शत्रुओं के लाशों से रणभूमि को सजा दिया। कभी महाराणा प्रताप के रूप में अपने शैयृ से शिक्त उनके जीने की इच्छा ने लहू से रणभूमि को रंग दिया। कभी हेमू के रूप में भारतीय तलवारों को तेज प्रदर्शित कर दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। कभी उनके अलौकिक साहस ने शिवाजी के रूप में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला प्रज्वलित की। कभी वीरांगना झांसी की रानी बनकर अपने पवित्र बलिदान से मातृभूमि की वंदना की।
गोपाल कृष्ण गोखले, खुदीराम बोस, सरदार भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खां, नाना साहब, तात्या टोपे, मदन लाल धींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, वीर कुंवर सिंह आदि ना जाने कैसे-कैसे भारत माता के वीर सपूतो ने हंसते-हंसते अपने भारत की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। मौत को देखकर कभी नहीं घबराया बल्कि इनके साहस बुद्धि और शौर्य के सामने खुद मौत घबरा गई। इसलिए कहा गया है-
ना गोलियों की बौछार से ना तलवारों की झनकार से।
बंदा डरता है तो सिर्फ परवरदिगार से।।
हाथ में डंडा लेकर जब सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी अपने देश की आजादी के लिए निकले तो बड़े-बड़े धुरंधरों को नतमस्तक होना पड़ा। इसलिए तो कहा गया है -
सदियों की जिसने कर दी पल में दूर गुलामी।
नेताओं के उस नेता को सौ सौ बार सलामी।।
पराधीनता की बेड़ियों ने असंख्य माताओं की मांग सूनी की, हजारों सुहागिनों के सुहाग छीने, कितने बहनों ने सिंदूर पोछे और इसके लिए हजारों बेटों ने निर्वासन का दंड छेला, हजारों भाइ हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए। कुछ ने काल कोठरीयों में घुट घुट कर दम तोड़ दिए। लेकिन एक बार आह तक नहीं किए।
लाखों लोगों के भक्षण के बाद पराधीनता रुपी इस दानव का पेट भरा और अंत में 15 अगस्त 1947 का वह स्वर्णिम दिवस था, जब सूरज की लाली में हमारा तिरंगा शेषनाग की तरह फन काढे़ लहराने लगा और इतिहास के पन्नों में यह दिन अपना एक निशान छोड़ गया। इसलिए हमारे देशवासियों की सूरता, हिम्मत और ताकत को देखते हुए किसी ने कहा है -
मुंह पर तोपे आज लगा लो पर मन तो स्वाधीन रहेगा।
तूफानों की बंदी बनकर क्या सूरज पराधीन रहेगा।।
हमें आजादी मिल गई, हम आजाद हो गए। लेकिन जिस आजादी को गले लगाने के लिए वीरो ने इतना बड़ा संघर्ष किया वास्तव में वह हमें नहीं मिल सका।
आज हमारे देश में एक तरफ देश भक्त अपने प्राणों की बलि चढ़ाते हैं तो दूसरी तरफ अपने ही देश के गद्दार, भ्रष्ट, बेईमान, दुष्ट, अत्याचारी किड़ो की कमी नहीं है। यह हमारे देश को अंदर ही अंदर खोखला करने पर तुले हैं। आज जयचंद और मीर जाफर जैसे देशद्रोहियों की कमी नहीं है। आज जो चीनी और पाकिस्तानी दलालों का काम करता है, अपने देश का रहस्य उन्हें बतलाता है और वही दूसरी तरफ देश भक्ति का ढोंग रचता है।
इतना ही नहीं आज हमारे देश में आतंकवाद, अलगाववाद, भ्रष्टाचार, संप्रदायवाद आदि ना जाने ऐसे ऐसे कितने कुरितियां विद्यमान हैं। हमें अपने आप को अच्छा बना कर यह संकल्प करना होगा कि इन सभी कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंके। तभी हमारे शहीद सपूतों का बलिदान सार्थक सिद्ध होगा। आज हर एक हिंदुस्तानियों की वही अभिलाषा होनी चाहिए जो माखनलाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा थी-
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाए जिस पथ पर जाएं वीर अनेक।।
इन्हीं टूटी फूटी शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।
जय हिंद जय भारत!
जय जवान जय किसान!!
जय विश्व जय विज्ञान!!!
15 अगस्त पर भाषण (15 August Speech in Hindi)
भाषण 2:
परम आदरणीय,
सभापति महोदय, परम पुण्य गुरुजनों,
आज अपना राष्ट्र 74वाँ स्वतंत्र दिवस हर्ष और उल्लास के साथ मना रहा है। इस पावन पर्व के अवसर पर मैं उन शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं जिनकी कुर्बानी के बदौलत आज हम इस स्वतंत्र देश के नागरिक हैं।
मेरे दोस्तों मुझे गर्व है इस देश पर, इस देश की भूमि पर जिन्होंने हमें नया जीवन दिया है। शायद हम यह नहीं समझ पाते, गुलामी होती क्या है? क्योंकि हम तो एक स्वतंत्र देश में पैदा हुए हैं। लेकिन 1947 से पहले ऐसे बहुत से वीर सपूत पैदा हुए हैं जिन्होंने आज़ादी और गुलामी को बहुत निकट से देखा है।
आजादी किसे अच्छी नहीं लगती चाहे वह मनुष्य हो या किसी पिंजरे में बंद पक्षी ही क्यों ना हो। सब गुलामी की जंजीर को तोड़ दुनिया देखना चाहते है। आज हिंदुस्तान की पूरी जनता कहती है, जो बोएगा वही काटेगा। लेकिन 1947 से पहले यह कथन गलत साबित होता था। गोरे हर एक भारतीयों के ऊपर जुल्म और अत्याचार का कारण बना हुआ था। इसके 200 वर्षों तक हमारी एक इंकलाबी शक्ति एवं वीरांगनी गाथा है।
हमारे ही मुल्क में आकर गोरे हम पर हुकुम चलाते थे। हमारे रस्म रिवाज , रहन-सहन का गला दबा दिया गया था और हम दासता की अंधेरी दुनिया मे दर-ब-दर भटकते आशाओं के दीप जलाते उजाले कि प्रतीक्षा कर रहे थे। क्या करते बेबस थे, मजबूर थे, बेसहारे थे, गुलामी की जंजीरों में जकड़े किसी बंद पक्षी की तरह कैद थे। हमें रातों दिन इस कठोर पिड़ा के शोक मे अपने आंसुओं को पी-पी कर जीना पड़ता था।
क्या भारत मां के कोख से कोई ऐसा वीर सपूत पैदा ना होगा जो इन जोर जुल्मों को आजाद कर भारत मां के पैरों पर रेंगने वाली किड़ो को मसल सके? परंतु सौभाग्य की बात यह है कि हमारी भारत मां वीर हीन नहीं बल्कि उसने ऐसे ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया है जो अपने देश के लिए, अपने राष्ट्र के लिए, अपने मुल्क के लिए, अपने वतन के लिए, अपने आप को कुर्बान कर सकते हैं। शायद इसीलिए हमारी भारत मां ने कहा है के अगर दिन प्रतिदिन इन आंसुओं का प्रकोप बढ़ता गया तो एक दिन हम किसी पिजड़े में बंद पक्षी की तरह विवश होकर रह जाएंगे।
मेरे जवाँ तुझको तुम्हारी मां ने पुकारा है,
हमें दास्तां से मुक्त करो यह काम तुम्हारा है।
तूफानों से मत घबराना बढ़ते कदम बढ़ाते जाना,
बहाने पड़े लहू के दरिया रणभूमि में पीठ मत दिखाना।।
खाने पड़े गोली अगर हंसते-हंसते वक्त दिखाना,
सदैव जमाना याद करें एक ऐसा इतिहास बनाना।।।
इस पुकार को सुनते ही कोई असम से तो कोई बंगाल से, कोई गुजरात से तो कोई महाराष्ट्र से, कोई यूपी से तो कोई बिहार से सब इस स्वतंत्रता संग्राम की आग में कूद पड़े।
मेरे सहपाठीयों इस संग्राम के तहत कितने मां बेटे से बिछड़ गई। कितने भाई भाई से बिछड़ गए। इतना ही नहीं इस तूफान में कितने माताओं की मांगे उजड़ गई। कितनी बहने सुहागन होने से पहले अभागन बन गई। आंसू बहाते बहाते अपने गमों के सहारे यादों में जी जल गई। तब जाकर हमें यह आजादी मिली जो सूरत और बक्सर की लड़ाई के बाद अस्त होता हुआ प्रतीत हुआ, जो 15 अगस्त 1947 को हमेशा हमेशा के लिए उदित हो गया। भारत भारत मां के पैरों में लगी बेड़िया झन झंकार कर टूट गई।
मेरे प्रिय जनों, इस स्वतंत्रता संग्राम की कहानी को हम बार-बार इसलिए दूहरा रहे हैं कि हम उन पिछली गलतियों को फिर से याद करें जिसके चलते हम गुलाम थे। आज तो अपने देश मे कुछ ऐसे भी गीदड़ हैं जो अपने स्वार्थ के लिए अपने मां को भी नीलाम कर देते हैं। इन्हें ऐसी सजाए दो के इनके खाल ढूंढ कर भी कोई दूसरा गीदड़ पैदा होने का नाम ना ले। जाने मेरे उन धरती पुत्रों को जिन्होंने अपने प्राणों की भेंट देकर हमें नया जीवन दिया है।
हमारी मातृभूमि ने दुखों में हँसना सीखया है, कायरों की भांति रोना नहीं। हमारा हिंदुस्तान लाखों में एक था, है और रहेगा। इसमें कोई आतंकवाद नहीं रहेगा। जिस तरह एक आसमान में दो सूरज नहीं टिक सकता उसी तरह हम जंग बाजों के सामने कोई दूसरा जंगबाज नहीं टिक सकता।
ऐ इस मुल्क में छुपे आतंकी भेड़ियों,
आतंकवाद मत फैलाओ।
अरे बंदूको-बारूदो से तो हम बहुत खेल चुके है,
अहिंसा के पुजारी से शांतिवाद मत मिटाओ।।
जिस दिन हथियार उठा लेंगे,
वह दिन तुम्हारे जिंदगी का आखरी दिन होगा
काल का गाल फट जाए शायद जब हमारे हाथों में संगीन होगा।।।
हमारी भारत माँ अभी भी सोने की चिड़िया है। इसको छूना तो क्या किसी ने आंख दिखाया तो उसकी आंखें नोच लेंगे। किसी ने हाथ बढ़ाया तो उस की हाथे काट लेंगे। किसी ने टांग अड़ाया तो उसकी टांगे तोड़ देंगे यहां तक के उसके पांव के निशान तक ना बचे।
किसी ने सच ही कहा है कि आने वाले के पांव के निशान तो मिलते ही हैं पर जाने वाले के नहीं।
अंत में मैं अपने वाणी को विराम देते हुए यह शपथ लेना चाहता हूं -
मिट जाऊंगा या रन में मिटा दूंगा।
गद्दारों की हुकूमत, मरते दम तक यही कहूंगा।।
जय हिंद जय भारत
धन्यवाद।